आशिषा सिंह राजपूत, नई दिल्ली
23 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की 118वीं जयंती और किसान दिवस मनाया जाएगा। चौधरी चरण सिंह ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में किसानों के लिए बहुत से महत्वपूर्ण फैसले लिए थे। वह किसानों के हक में सदैव अग्रसर रहे। यह कहना गलत नहीं होगा की चरण सिंह को किसान अपना मसीहा मानते हैं।
इस बात को सपा भलीभांति जानती है इसीलिए 23 दिसंबर को चरण सिंह की जयंती धूमधाम से मनाए जाने के बाद सपा 25 दिसंबर को महाराजा बिजली पासी की जयंती के मौके पर गांव स्तर पे किसान घेरा का आयोजन करेगी। जिसमें किसानों के बीच रहकर सर्द मौसम में अलाव जलाकर किसानों की स्थिति पर चर्चा करेगी। वहीं भाजपा की नीतियों और कानूनों पर शिकंजा कसते हुए भाजपा को घेरे में लेगी।
किसानों की स्थिति व आत्महत्या के मामले
भारत का 70% खेमा किसानों का माना जाता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। बीज से फसल तक उत्पाद से खाद पदार्थों तक किसान दिन रात मेहनत करता है। भारत के द्वितीय प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी द्वारा दिया गया। यह नारा ‘जय जवान – जय किसान’ आज के दिवस में मात्र नारा ही बनकर रह गया है।
किसानों की स्थिति के बारे में बात की जाए तो आज हर एक किसान अपने हक के लिए लड़-मर रहा है। स्वतंत्र देश के लोकतंत्र में आज भी किसान की स्थिति बेहतर नहीं है। कभी किसान अपनी फसल व खाद पदार्थों पर लिए गए अपने ऋण माफ कराने के लिए बेबस है, तो कभी इसी बेबसी के लिए आत्महत्या तक करने के लिए मजबूर है। आए दिन किसानों के आत्महत्याओं का मामला बढ़ता जा रहा है।
जितनी लागत से वह फसल लगाता है, उसका न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी के आधे के भी बराबर मूल्य ना मिलने पर निराशा व आत्महत्या किसानों का अंतिम पथ बनती जा रही है। पिछले 3 साल के आंकड़ों की बात की जाए तो 38 हजार किसानों ने आत्महत्या की है। जिसमें हर दिन 35 किसान जिंदगी और मौत से समझौता कर मौत का आखरी रास्ता अख्तियार कर रहे हैं। इस आंकड़े को देखते हुए किसान आत्महत्या की घटनाओं में 45 फीसदी का इजाफा हुआ है।
किसान आंदोलन
2020 हाल ही में बीजेपी सरकार द्वारा लगाए गए नए कृषि कानून का जमकर विरोध हो रहा है। जिसमें स्वयं किसान आंदोलन कर रहे हैं। किसानों का विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा वहीं सरकार अपने बनाए गए कानून को लेकर अडिग है। हालांकि बीजेपी के बड़े नेताओं द्वारा लगातार बयान दिए जा रहे हैं कि नए कानून किसानों के हक में हैं। जबकि किसान अपना आंदोलन जारी रखते हुए सरकार की बातें मानने को तैयार नहीं है।
किसान मांग कर रहे हैं कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम कीमत पर ख़रीद को अपराध घोषित करे और एमएसपी पर सरकारी ख़रीद लागू रखे। किसानों का मानना है कि सरकार द्वारा लाए गए नए कृषि कानूनों से मात्र निजी कंपनियों का फायदा होगा एवं छोटे किसान इस कानून में पिस कर रह जाएंगे। जिसमें छोटे एमएसपी तो दूर उनकी लागत भी ना निकल पाएंगे। सरकार की हट व किसानों का कानून के प्रति प्रदर्शन आए दिन बढ़ता जा रहा है।