आशिषा सिंह राजपूत, नई दिल्ली
केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों का किसान जमकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। और किसान आंदोलन की अगुवाई भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत कई मौकों पर करते आए हैं। 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में हुई हिंसा और लाल किले पर हुए बवाल के बाद किसान आंदोलन ने एक नया रूप ले लिया है। ऐसे गंभीर हालात में सवाल राकेश टिकैत पर भी उठाए जा रहे हैैं कि शांतिपूर्ण किसान आंदोलन अचानक से हिंसात्मक क्यों हुआ? जानें क्या है राकेश टिकैत के जवाबदेही की वजह और उनके परिवार का पूरा सच?
पिता महेंद्र सिंह टिकैत की विरासत
52 वर्षीय किसान नेता राकेश टिकैत का आज उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत की याद दिलाता है। महेंद्र सिंह टिकैत उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय किसान नेता थे। उन्होंने लगभग 25 वर्षों तक किसानों की समस्याओं के लिए संघर्ष किया था। महेंद्र टिकैत भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भी रहे और कई मौकों पर किसानों की आवाज भी बने। महेंद्र टिकैत काफी कम बोलने वाले व्यक्ति थे जो खड़ी बोली में बात करते थे।
लेकिन किसानों से जुड़ी समस्याओं जैसे स्थानीय स्तर पर बिजली के दाम अन्य दिक्कतों के लिए महेंद्र टिकैत ने हर मौकों पर किसानों का नेतृत्व किया उनकी आवाज बंद कर सरकार के भी आगे खड़े रहे। महेंद्र सिंह टिकैत एक धर्म-निरपेक्ष व्यक्ति थे। जो अपनी व दूसरी जाति के साथ-साथ मुस्लमान किसानों के लिए भी साथ खड़े रहते थे। इसी महान शख्सियत की वजह से लोग उन्हें किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह की जगह देखते थे। महेंद्र टिकैत को लोग ‘बाबा टिकैत’ कह कर संबोधित करते थे। वह हमेशा किसानों के एक सामाजिक संगठन का नेतृत्व करते रहे।
कौन हैं राकेश टिकैत?
राकेश टिकैत का जन्म 4 जून 1969 को मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के सिसौली टिकैत परिवार के पैतृक गांव में हुआ था। राकेश टिकैत ने एमए तक पढ़ाई की है। बताया जाता है कि उनके पास वक़ालत की डिग्री भी है। राकेश टिकैत वर्ष 1985 में दिल्ली पुलिस में बतौर कांस्टेबल भर्ती हो चुके हैं। राकेश टिकैत कॉन्स्टेबल पद से प्रमोशन पाकर सब-इंस्पेक्टर भी बनें। उसी दौरान किसानों के लिए बिजली के दाम कम करने की मांग पर आंदोलन कर रहे पिता महेंद्र टिकैत से आंदोलन को खत्म करने का दबाव राकेश टिकैत पर शासन प्रशासन द्वारा बनाया जाने लगा। महेंद्र टिकट के आंदोलन को बड़ा जनसमर्थन प्राप्त था।
वहीं राकेश टिकैत पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए नौकरी छोड़ कर बाबा टिकैत के आंदोलन में शामिल हो गए। पिता महेंद्र टिकट हमेशा राजनीति से दूर रहने की बात करते थे। लेकिन 2011 में लंबे अरसे से बीमारी से जूझते हुए महेंद्र टिकट की मृत्यु के बाद उनके बेटे राकेश टिकैत ने राजनीति में कदम रखा। 2007 में पहली बार उन्होंने मुज़फ़्फ़रनगर की बुढ़ाना विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़े जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उसके बाद टिकैत ने 2014 में अमरोहा लोकसभा क्षेत्र से चौधरी चरण सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़े और वहां भी उनकी हार हुई। लेकिन राकेश टिकैत का भारतीय किसान यूनियन में हमेशा महत्वपूर्ण योगदान देने से किसानों पर उनका प्रभाव बढ़ता रहा।
राकेश टिकैत और नरेश टिकैत का किसान आंदोलन में मतभेद
भारतीय किसान यूनियन कृषि कानून के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहा है। किसान सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलकर बैठे हैं। इस आंदोलन की अगुवाई करते हुए दोनों टिकैत भाई इस आंदोलन का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। लेकिन 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों के उग्र हो जाने के बाद से जन समाज और सियासत दोनों में गर्मा गर्मी का माहौल बन गया है। इसी बीच टिकैत भाइयों में भी मतभेद हो गए हैं। किसान आंदोलन के बीच भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि गाजीपुर बॉर्डर से धरना खत्म कर देना चाहिए। उन्होंने कहा कि सब सुविधाएं बंद होने के बाद धरना कैसे चलेगा।
अब नेता-कार्यकर्ताओं को धरना खत्म कर वापस लौट जाना चाहिए। सिसौली में महापंचायत के दौरान नरेश टिकैत ने कहा कि किसानों की पिटाई से अच्छा है कि वो धरना खत्म कर दें। वहीं भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता और नरेश टिकैत के छोटे भाई राकेश टिकैत ने आंदोलन पर अडिग रहते हुए कहा है कि ये आंदोलन जारी था, जारी है और जारी रहेगा। प्री प्लान्ड तरीके से हमारे आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। लेकिन तीन काले कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन जारी रहेगा।